वित्त मंत्री और नीती आयोग का दस्तावेज़ कहता है मंडी और MSP समाप्त हो: रवीश कुमार

सरकार ने किसानों को रोकने के लिए हाईवे तक खोद डाले। अगर यही काम किसानों ने किया होता तो उन्हें आतंकवादी बता दिया गया होता। सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान के तहत हर्जाना वसूलने के क़ानून की धाराएँ लगा दी गईं होतीं। यहाँ तो सरकार की सड़क खोद रही है। उसके लिए ज़रूर ऊपर से निर्देश गए होंगे कि अब ये किसान वोट के लिए ज़रूरी नहीं रहे। राजनीतिक रूप से हिन्दू बना दी गई जनता अब धर्म पर वोट करेगी। जनता का एक बड़ा तबका मुद्दे पर वोट नहीं करेगा। धर्म की पहचान पर ही करेगा। चाहे वो बेरोजगार हो या किसान या कोविड के दौरान बिना सैलरी के काम करने वाले डॉक्टर हों या सरकारी कर्मचारी।

अपने मीडिया बल के ज़रिए सरकार ने इन किसानों को पंजाब हरियाणा का कुछ किसान बना दिया है। बाक़ी किसानों के खाते में चार महीने पर दो हज़ार पहुँच जाएँगे। 2024 से पहले यह राशि बढ भी जाएगी। इसलिए सरकार फसल के दाम और अन्य माँगों की प्रवाह क्यों करेगी। गड्ढे खोदने के बाद भी चुनाव में वोट उसी को मिलेगा। अगर विपक्ष किसी उम्मीद में किसी आंदोलन के साथ है तो उसकी मर्ज़ी। विपक्ष को अब तीर्थ समझ कर इन आंदोलनों में जाना चाहिए।

यह रणनीति मोदी सरकार की सबसे सफल राजनीति है। इसलिए उसे किसी तबके के जनता होने प्रदर्शन करने या नाराज़ होने से परेशान नहीं होती। एक बार धर्म के ख़तरे की घंटी बजेगी, सारे मुद्दे ख़त्म हो जाएँगे। इसी विश्वास में यह सरकार किसानों के दिल्ली पहुँचने से रोकने के लिए सड़कें खोद देती है और मिडिल क्लास जो कि हिन्दू क्लास है इसे सहज स्वीकार भी कर लेता है। अब कोई भी वर्ग जनता नहीं है। जनता होना उसके लिए पार्ट टाइम है। फुलटाइम वह धार्मिक है। उसकी राजनीति धार्मिक होने की है। यानी कभी कभार पूजा पाठ की तरह जनता बन प्रदर्शन करेगी और हिन्दू धर्म की राजनीति करेगी। जाति भी इसी पहचान के भीतर आती है।

क़ानून का मक़सद और क़ानून का मसौदा दो अलग चीज़े हैं। किसान बिल को लेकर सरकार के दावों यहीं पर अलग हो जाते हैं। किसी भी बड़े संशोधन में दो चार चीज़े अच्छी निकल आती हैं लेकिन उसे व्यापकता में देखने की ज़रूरत होती है।
मंडी ख़त्म करने की बात हवा से नहीं आई थी। दिसंबर 2018 में नीति आयोग ने 2022 के भारत के लिए एक दस्तावेज़ पेश किया था। इसे अभिताभ कांत, स्व अरुण जेटली ने लाँच किया। इसमें साफ साफ लिखा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य ख़त्म कर देना चाहिए। इसे तय करने के लिए बने आयोग को भी ख़त्म कर देना चाहिए। यह खबर लाइव मिंट में छपी है। 2019 में निर्मला सीतारमण कहती हैं कि मंडी ख़त्म कर देना चाहिए। आप खुद सर्च कर सकते है। इसलिए किसान चाहते हैं कि क़ानून में लिखा हो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा।

मोदी सरकार ने किसानों से सरकार के घबराने की रवायत बदल दी है। किसानों के लिए गड्ढे खोद दिए गए। वो सिर्फ़ गड्ढे नहीं हैं। राजनीतिक रूप से किसानों को दफ़्न कर देने के लिए कब्र है। कफ़न का दो हज़ार किसानों को हर चार महीने में उनके खाते में भेज दिया जाएगा। यह दौर जनता की समाप्ति का है। आप जो देख रहे हैं वो जनता का अवशेष है।

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